Anamika

Aainasaaz Anamika - 2nd Edition - New Delhi Rajkamal Prakashan Pvt. Ltd. 2022 - 242p. Hard Bound

ख़ुसरो एक पैदा हुआ, मध्यकालीन कहे जानेवाले उस साँवले हिंदुस्तान में जिसकी छतें इतनी ऊँची होती थीं, कि हम बौनों की तिमंजिला बाँबियाँ उनमें खडी हो जाएँ । यह उस ख़ुसरो की आत्मकथा से रचा हुआ उपन्यास है जिसमे ख़ुसरो की चेतना को जीनेवाले आज के कुछ सूफ़ी मन वालों की कहानी भी साथ में पिरो दी गई है । ख़ुसरो इस कथा में अपना वह सब बताते हैं जिस तक हम उनकी नातों, कव्वालियों और पहेलियों की ओट में नहीं पहुँच पाते-कि उनका एक परिवार था, एक बेटी थी, बेटे थे, पत्नी थी, और थे निजाम पिया जिनकी निगाहों के साए तले उन्होंने वह सब सहा जो एक साफ़, हस्सास दिल अपने खून-सने वक्तों और बेलगाम सनकों से हासिल कर सकता था । और इसमें कहानी है सपना की, नफ़ीस की, ललिता दी और सरोज की भी, जो आज के हत्यारे समय के सामने अपने दिल के आईने लिये खड़े हैं, लहूलुहान हो रहे हैं, पर हट नहीं रहे, जा नहीं रहे, क्योंकि वे उकताकर या हारकर अगर चले गए तो न पदिमनियों के जौहर पर मौन रुदन करनेवाला कोई होगा, न इंसानियत को उसके क्षुद्रतर होते वजूद के लिये एक वृहत्तर विकल्प देनेवाला ।.

उपन्यास के कथानक में प्रवेश करने से पूर्व इस उपन्यास के उस कथा कौशल की चर्चा भी अपेक्षित है जो इस उपन्यास को एक यादगार उपन्यास का रूप देता है। वे कौन सी और कैसी कथा और कथा युक्ति और कथ्य हैं जिनके कारण यह उपन्यास अद्वितीय बन पड़ा है। दोहरे स्तर पर कहानी दो अलग अलग और सुदूर की शताब्दियों में गुंथी हुई क्या बयान करने जा रही है। क्या कोई अंतर्निहित संवेदना है जो इतिहास के इन दो अलग छोरों पर बैठे पात्र और उनके परिवेश को जोड़ते हों। “जब भी हम किसी बिसरे हुए कालखंड से कोई कहानी उठाते हैं, परछाइयां और आहटें पकड़ने का अजब खेल हमें खेलना होता है। यह प्रक्रिया हाहाकार में डूबे समंदर से मछलियां पकड़ने जैसी प्रक्रिया है।”

अमीर खुसरो और सूफीवाद की प्रमाण पुष्ट, तिथि निर्देशित ऐतिहासिकता को जिस रूप में बार बार वर्तमान में दिल्ली जैसे शहर में घट रही घटनाओं, इन घटनाओं से प्रभावित सामान्य पात्र और उनके जीवन के साथ अन्तर्भुक्त किया गया है वह वर्तमान में नायक नफीस और नायिका सपना की प्रेम या मौन प्रेम कथाओं को और भी तीव्र प्रभाव देता है।

आईना साज के पिछले पृष्ठ पर स्पष्ट लिखा हुआ है कि यह उस खुसरो की आत्मकथा से रचा हुआ उपन्यास है जिसमें खुसरो की चेतना को जीनेवाले आज के कुछ सूफी मन वालों की कहानी भी साथ में पिरो दिए गई है। सूफियों और हठयोगियों की अंतरंग अनुभूतियों में सब कुछ तो साझा ही है और यही विरासत है। परन्तु उपन्यास खुसरो की आत्मकथा से बहुत दूर निकल गया है और डॉक्टर नफीस, सिद्धू, सपना और ललिता जी जैसे किरदारों ने परवर्ती कथा का वितान घेर लिया है। मूर्तियां स्पष्ट तौर पर खुद सौन्दर्य और विस्तार का बयान करने लगी हैं।

एक स्वाभाविक सा प्रश्न उठता है कि आईनासाज की कथा कहने के लिए अमीर खुसरो और इतिहास के उस कालखंड के आख्यान क्यूं लिए गए। इतिहास के उस अध्याय में क्यूं जाता है कथानक जब दिल्ली सल्तनत अपने प्रारंभिक वर्षों में भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी उपादेयता सिद्ध कर रहा था और सामाजिक और धार्मिक स्तर पर सूफीवाद अपनी जड़ें जमाने में लगा था और अपने नए सिद्धांतों और एकाकार की परिकल्पना के लिए सामाजिक मान्यताएं तलाश रहा था। इसके उत्तर की तलाश वहां जाकर खत्म होती है कि उपन्यास का केन्द्रीय संवेदन ही समग्रता, एकीकृत और समाहित प्रवृत्तियों का संयोजन है, ऐसी सामाजिक अवस्था की तलाश है जहां स्त्री-पुरुष, हिन्दू-मुसलमान, अच्छा-बुरा का परंपरागत छद्म न रहे और एक सह अस्तित्व का वातावरण अपेक्षित हो बरक्स उसके जब आधुनिक जीवन की जटिलताएं और इन जटिलताओं से उपजे विमर्श घृणा का माहौल लगातार बना रहे हैं।

समवेत समाज, समवेत व्यक्तित्व, स्त्री पुरुष सह अस्तित्व, समवेत गायन, समवेत भाषा का उत्कर्ष है अमीर खुसरो और निज़ामुद्दीन औलिया का काल, इतिहास में। अमीर खुसरो को नात, कव्वाली की प्रेरणा ही अयोध्या के मंदिरों में गाए जानेवाले समवेत गायन वादन की सुरलहरियों से मिली। “तरन्नुम में कुरआन की आयतें गाई जाने लगीं और धीरे धीरे डफ के साथ रबाब, यंग, नय, कंगोरा और ताली बजाकर मैंने शागिर्दों से तरन्नुम में आयतें सुनना शुरू की … फिर आयतों की जगह अपने लफ़्ज़ों में जिक्रे खुदा शुरू किया जिसमें आशिक माशूक सा रिश्ता खुदा और बंदे में बखाना गया था। बाद में यही बंदिशें नातिया कव्वाली के नाम से मशहूर हुई।”

उपन्यास में जिस विराटता की परिकल्पना है उसमें स्त्री केन्द्रीय अस्तित्व लिए हुए है: “और मेरे मन में यह बात गहरे घर कर चुकी थी कि युद्ध हों या दंगे फसाद – सबका क्रूरतम कोप झेलता है औरत का शरीर, उसका मन, उसका संवेदन। कायनात की सबसे खूबसूरत चीज औरत, सिरजन हार के नूर का खज़ाना और हमने उसका क्या हाल कर रखा है? मेरी पूरी शायरी, सूफियों का पूरा दीनो मजहब एक ही फेर में लगा है कि कैसे हम ऐसी फिजा रच सकें जहां औरत, मुफलिस, बुजुर्ग, बच्चे और प्रकृति , जो खुदा का आईना हैं, शैतानी ताकतों के जूतों तले चूर चूर होने से बच जाएं।”

जब अनामिका जी का कथाकार काव्यात्मक संवेदना से स्त्री की एकांतिक अनुभूतियों को चित्रित करने में प्रवृत्त होता है तो उसकी भाषा के बिम्ब और उपमान तैलीय क्लासिक रंगचित्रों के आकर्षण से उपस्थित होते हैं। इन अनुभूतियों के आईना की कई सदियों में बिखरी किरचियां वे समेटती हैं, फिर अनूठी आईनासाजी के लिए किरदारों को कई बार हाशिए से निकलकर मध्य में डालती हैं। खुसरो और शायरी के इल्म पर लेखिका का आग्रह है “शायरी का मकसद ही है भीतर छुपी प्रीत की लौ सुलगा देना – सारे भीतरी – बाहरी फसाद मिटा देना।” हिंदी साहित्य में समानांतर आठ सदियों में बिखरे कथानक को जिस शिल्प में बुना गया वह उपन्यास जगत की एक महत्त्वपूर्ण कृति बन सका है।

असाधारण शिल्प का प्रयोग


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9789388753432


Hindi --Hindi Novel

H891.433 / ANA/AAI