TY - BOOK AU - Chaturvedi, Ramswaroop TI - Hindi Sahitya Aur Samvedana Ka Vikas SN - 978-93-5221-114-2 U1 - H 820.91 CHA/Hin PY - 2022/// CY - Prayagraj PB - Lokbharati Prakashan KW - Hindi N2 - हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने की क्या-क्या समस्याएँ हैं, इसे लेकर एकाधिक पुस्तकें लिखी जा सकती हैं,किसी रूप में लिखी भी गई हैं। कुछ लेखक-समूहों, मुख्यत: शोधकर्ताओं द्वारा इतिहास की सामग्री के संकलन प्रस्तुत हुए हैं, जो अपने आपमें उपयोगी हैं। पर नहीं लिखा गया तो इतिहास, रामचंद्र शुक्ल और छायावाद के बाद! ऐसे चुनौती भरे वातावरण में साहित्य और संवेदना के विकास को साथ-साथ व्याख्यायित करते चलना कितना कठिन है, यह सहज अनुमान किया जा सकता है। किसी भी साहित्य के इतिहास की अच्छाई को जाँचने की दो कसौटियाँ हो सकती हैं। एक तो यह कि वह कहाँ तक, साहित्य की ही तरह, विविध पाठक-वर्गों की अपेक्षाओं की एक साथ पूर्ति करता है! और दूसरे यह कि वह साहित्य को उप-साहित्य से अलग करके चलता है या नहीं, विशेष रूप से एक ऐसे युग में जब कि संचार-माध्यम साहित्य के विविध सीमांतों से टकरा रहे हैं। दूसरे शब्दों में कि वह इतिहास असल में कितनी दूर तक साहित्य का इतिहास है इन कसौटियों पर परख कर प्रस्तुत अध्ययन की जाँच स्पष्ट ही आप स्वयं करेंगे! अपनी ओर से हम इतना अवश्य कहना चाहेंगे कि समूची साहित्य-प्रक्रिया की जैसी संवेदनशील समझ विकसित करने का यत्न यहाँ हुआ है वैसी ही विश्वसनीय तथ्य-सामग्री भी जुटाई गई है, जो अपने आपमें एक विरल संयोग है। अब प्रस्तुत है 'विकास' का नया संबर्द्धित संस्करण! गत एक दशक में हुए विविध संस्करण जहाँ इस इतिहास की पाठक समाज में व्यापक स्वीकृति का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं, वहीं यह इस प्रयत्न का परिचायक है कि पुसतक के कलेवर को बिना अनावश्यक रूप से स्फीत किए इस दशक की नयी रचना-उपलब्धियों को कैसे समाविष्ट किया जा सकता है। यों 'विकास' अपने नामकरण को स्वत: प्रमाणित कर सके, यह इस नये संवर्द्धित संस्करण की, नयी मुद्रण-शैली के साथ, प्रमुख विशेषता होनी चाहिए। ER -