Chaturvedi, Ramswarup

Hindi Gadya Vinyas Aur Vikas - 5 - Allahabad Lokbharati Prakashan 2018 - 314

वर्तमान युग गद्य है, अच्छे और बुरे दोनों अर्थों में। इस दृष्टि से गद्य की प्रकृति और उसके विकास को समझने का क्रम आधुनिक साहित्य की समग्र परम्परा को देखने-परखने की प्रक्रिया तो है ही, एक व्यापक स्तर पर वह समूची हिन्दी जाति की मानसिकता को समझने का यत्न भी है। आलोचक रामस्वरूप चतुर्वेदी की अभिनव कृति ‘हिन्दी गद्य : विन्यास और विकास’ यही काम करती है। गद्य विषयक तथ्य-सामग्री यहाँ जितनी विश्वसनीय है, उतना ही गद्य का विवेचन अपने में स्वयं गद्य का मानक रूप बन सका है। इस द्विस्तरीय उपलब्धि का अनुमान पुस्तक के किसी भी अंश को पढ़ने पर आसानी से हो सकता है। फिर गद्य के प्रसार और विस्तार में काव्य-रूपों का उदय कैसे होता है, यह मौलिक विवेचन प्रस्तुत अध्ययन की निजी विशेषताओं में से एक है। ग्रन्थ का विवेचन-क्रम तीन खंडों में चलता है। प्रथम खंड में गद्य की सामान्य प्रकृति का विश्लेषण है, द्वितीय में हिन्दी गद्य के एक हज़ार वर्षों का विकास-क्रम सोदाहरण विस्तार में अंकित हुआ है, और तीसरे तथा अन्तिम खंड में हिन्दी के प्रमुख गद्यकारों का सम्रग्र तथा स्वतंत्र रूप से विवेचन है। अन्त में कई परिशिष्टों के अन्तर्गत गद्यविषयक कुछ सामान्यत: दुर्लभ सामग्री सँजोई गई है, जो हर स्तर के अध्येता के लिए रुचिकर और उपयोगी दोनों होगी। यों गद्य आज जैसे समस्त जीवन में परिव्याप्त है उसके अनुकूल ही इस अध्ययन को परिपूर्ण बनाने का आलोचकीय यत्न है विविध वर्ग के पाठकों की तुष्टि कर सकने के लिए।

978-81-8031-919-8


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H 824.09 CHA/Hin