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Vidyapati Padavali Brnipuri, Ramvriksha

By: Brnipuri, RamvrikshaLanguage: Hin Publication details: New Delhi Lokbharti Prakashan Pvt. Ltd 2012 Edition: 6th EditionDescription: 160p. Soft/Paper BoundISBN: 9788180311260Subject(s): Hindi -- Hindi SuvicharDDC classification: H891.431.09
Contents:
यह 'विद्यापति पदावली' इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इसका संग्रह बेनीपुरी जी ने किया है । हिन्दी के प्रसिद्ध ललित निबन्धकार बेनीपुरी कवि, कहानीकार ही नहीं गरीबों, पीड़ितों और शोषितों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे । ऐसे लेखक के द्वारा विद्यापति की पदावली का संपादन प्रतीकात्मक अर्थ रखता है । पुस्तक के प्रारंभ में बेनीपुरी जी द्वारा लिखी गई भूमिका केवल विश्लेषण और सूचना की दृष्टि से नहीं बल्कि नयी अर्थ मीमांसा की दृष्टि से नयी है । इससे विद्यापति को हम पहले से कुछ अधिक जानने लगते हैं । विद्यापति की यह पदावली शब्दों के अर्थ की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है । बेनीपुरी जी शब्द पारखी थे । उन्होंने इस पदावली में शब्दों के संकेतिक अर्थ को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है जो अन्यत्र दुर्लभ है । विद्यापति के पदों को गाते हुए चैतन्य महाप्रभु समाधिस्थ हो जाते थे । आनन्द कुमार स्वामी को पदावली काव्य कला की दृष्टि से बहुत प्रिय थी । उन्होंने लिखा भी है । उस पदावली का यह प्रस्तुतीकरण अत्यंत उपयोगी है । बेनीपुरी जी विद्यापति को 'हिन्दी का जयदेव' और 'मैथिल कोकिल' कहते थे । उनकी वाणी का बेनीपुरी द्वारा भावित यह संस्करण लोगों को अवश्य रुचेगा । भूमिका में बेनीपुरी ने अपनी चिर- परिचित शैली में पदों की भाषा और कविता माधुरी का जो वर्णन किया है वह तो अन्यत्र दुर्लभ है ही । ' 'राजा की गगनचुंबी अट्टालिका' ' से लेकर गरीबों की टूटी हुई फूस की झोपड़ी तक में विद्यापति के पदों का जो सम्मान है; भूतनाथ के मंदिर और कोहबर घर में पदों की जो प्रतिष्ठा है उसको ध्यान में रखते हुए ही यह पुस्तक बेनीपुरी जी ने सम्पादित की है । इससे विद्यापति और उनकी पदावली की नयी अर्थवत्ता और चमक उजागर होती है । पाठ्यक्रम की दृष्टि से यह सर्वोत्तम है ।.
Summary: विद्यापति ने यद्यपि अनेक ग्रन्थों की रचना की तथापि उनकी प्रसिद्धि का मूल कारण ‘पदावली’ है। इसमें कवि ने राजा की गगनचुंबी अट्टालिका से लेकर गरीबों की टूटी हुई फूस की झोंपड़ी तक को समान स्थान दिया है। इसकी उपमाएँ अनूठी एवं नवीन हैं तथा उत्प्रेक्षाएँ कल्पना के उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। प्रकृति के चित्रण में बसंत और पावरा काल का वर्णन हृदय में चित्र सा उपस्थित कर देता है। इस प्रकार ‘पदावली’ एक महान रचना है। अधिक जानकारी एवं किताबों की सूची के लिए सम्पर्क करें यह ‘विद्यापति पदावली’ इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इसका संग्रह बेनीपुरी जी ने किया है। हिन्दी के प्रसिद्ध ललित निबन्धकार बेनीपुरी कवि, कहानीकार ही नहीं ग़रीबों, पीड़ितों और शोषितों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। ऐसे लेखक के द्वारा विद्यापति की पदावली का सम्पादन प्रतीकात्मक अर्थ रखता है। पुस्तक के प्रारम्भ में बेनीपुरी जी द्वारा लिखी गई भूमिका केवल विश्लेषण और सूचना की दृष्टि से नहीं, बल्कि नई अर्थ-मीमांसा की दृष्टि से नई है। इससे विद्यापति को हम पहले से कुछ अधिक जानने लगते हैं। विद्यापति की यह पदावली शब्दों के अर्थ की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। बेनीपुरी जी शब्द पारखी थे। उन्होंने इस पदावली में शब्दों के सांकेतिक अर्थ को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है जो अन्यत्र दुर्लभ है। विद्यापति के पदों को गाते हुए चैतन्य महाप्रभु समाधिस्थ हो जाते थे। आनन्द कुमार स्वामी को पदावली काव्य-कला की दृष्टि से बहुत प्रिय थी। उन्होंने लिखा भी है। उस पदावली का यह प्रस्तुतीकरण अत्यन्त उपयोगी है। बेनीपुरी जी विद्यापति को ‘हिन्दी का जयदेव’ और ‘मैथिल कोकिल’ कहते थे। उनकी वाणी का बेनीपुरी द्वारा भावित यह संस्करण लोगों को अवश्य रुचेगा। भूमिका में बेनीपुरी ने अपनी चिर-परिचित शैली में पदों की भाषा और कविता माधुरी का जो वर्णन किया है, वह तो अन्यत्र दुर्लभ है ही। ‘राजा की गगनचुम्बी अट्टालिका’ से लेकर ग़रीबों की टूटी हुई फूस की झोंपड़ी तक में विद्यापति के पदों का जो सम्मान है; भूतनाथ के मन्दिर और कोहबर घर में पदों की जो प्रतिष्ठा है, उसको ध्यान में रखते हुए ही यह पुस्तक बेनीपुरी जी ने सम्पादित की है। इससे विद्यापति और उनकी पदावली की नई अर्थवत्ता और चमक उजागर होती है। पाठ्यक्रम की दृष्टि से यह सर्वोत्तम है।
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Item type Home library Collection Call number Materials specified Vol info Copy number Status Notes Date due Barcode
Books Books HPSMs Ganpat Parsekar College of Education, Harmal
HPS-Hindi Poetry
HPS-HINDI H891.431.09 BEN/VID (Browse shelf(Opens below)) - 1 Available 8 Shelf HPS-3766

यह 'विद्यापति पदावली' इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इसका संग्रह बेनीपुरी जी ने किया है । हिन्दी के प्रसिद्ध ललित निबन्धकार बेनीपुरी कवि, कहानीकार ही नहीं गरीबों, पीड़ितों और शोषितों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे । ऐसे लेखक के द्वारा विद्यापति की पदावली का संपादन प्रतीकात्मक अर्थ रखता है । पुस्तक के प्रारंभ में बेनीपुरी जी द्वारा लिखी गई भूमिका केवल विश्लेषण और सूचना की दृष्टि से नहीं बल्कि नयी अर्थ मीमांसा की दृष्टि से नयी है । इससे विद्यापति को हम पहले से कुछ अधिक जानने लगते हैं । विद्यापति की यह पदावली शब्दों के अर्थ की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है । बेनीपुरी जी शब्द पारखी थे । उन्होंने इस पदावली में शब्दों के संकेतिक अर्थ को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है जो अन्यत्र दुर्लभ है । विद्यापति के पदों को गाते हुए चैतन्य महाप्रभु समाधिस्थ हो जाते थे । आनन्द कुमार स्वामी को पदावली काव्य कला की दृष्टि से बहुत प्रिय थी । उन्होंने लिखा भी है । उस पदावली का यह प्रस्तुतीकरण अत्यंत उपयोगी है । बेनीपुरी जी विद्यापति को 'हिन्दी का जयदेव' और 'मैथिल कोकिल' कहते थे । उनकी वाणी का बेनीपुरी द्वारा भावित यह संस्करण लोगों को अवश्य रुचेगा । भूमिका में बेनीपुरी ने अपनी चिर- परिचित शैली में पदों की भाषा और कविता माधुरी का जो वर्णन किया है वह तो अन्यत्र दुर्लभ है ही । ' 'राजा की गगनचुंबी अट्टालिका' ' से लेकर गरीबों की टूटी हुई फूस की झोपड़ी तक में विद्यापति के पदों का जो सम्मान है; भूतनाथ के मंदिर और कोहबर घर में पदों की जो प्रतिष्ठा है उसको ध्यान में रखते हुए ही यह पुस्तक बेनीपुरी जी ने सम्पादित की है । इससे विद्यापति और उनकी पदावली की नयी अर्थवत्ता और चमक उजागर होती है । पाठ्यक्रम की दृष्टि से यह सर्वोत्तम है ।.

विद्यापति ने यद्यपि अनेक ग्रन्थों की रचना की तथापि उनकी प्रसिद्धि का मूल कारण ‘पदावली’ है। इसमें कवि ने राजा की गगनचुंबी अट्टालिका से लेकर गरीबों की टूटी हुई फूस की झोंपड़ी तक को समान स्थान दिया है। इसकी उपमाएँ अनूठी एवं नवीन हैं तथा उत्प्रेक्षाएँ कल्पना के उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। प्रकृति के चित्रण में बसंत और पावरा काल का वर्णन हृदय में चित्र सा उपस्थित कर देता है। इस प्रकार ‘पदावली’ एक महान रचना है। अधिक जानकारी एवं किताबों की सूची के लिए सम्पर्क करें
यह ‘विद्यापति पदावली’ इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इसका संग्रह बेनीपुरी जी ने किया है। हिन्दी के प्रसिद्ध ललित निबन्धकार बेनीपुरी कवि, कहानीकार ही नहीं ग़रीबों, पीड़ितों और शोषितों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। ऐसे लेखक के द्वारा विद्यापति की पदावली का सम्पादन प्रतीकात्मक अर्थ रखता है।

पुस्तक के प्रारम्भ में बेनीपुरी जी द्वारा लिखी गई भूमिका केवल विश्लेषण और सूचना की दृष्टि से नहीं, बल्कि नई अर्थ-मीमांसा की दृष्टि से नई है। इससे विद्यापति को हम पहले से कुछ अधिक जानने लगते हैं।

विद्यापति की यह पदावली शब्दों के अर्थ की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। बेनीपुरी जी शब्द पारखी थे। उन्होंने इस पदावली में शब्दों के सांकेतिक अर्थ को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है जो अन्यत्र दुर्लभ है। विद्यापति के पदों को गाते हुए चैतन्य महाप्रभु समाधिस्थ हो जाते थे। आनन्द कुमार स्वामी को पदावली काव्य-कला की दृष्टि से बहुत प्रिय थी। उन्होंने लिखा भी है। उस पदावली का यह प्रस्तुतीकरण अत्यन्त उपयोगी है। बेनीपुरी जी विद्यापति को ‘हिन्दी का जयदेव’ और ‘मैथिल कोकिल’ कहते थे। उनकी वाणी का बेनीपुरी द्वारा भावित यह संस्करण लोगों को अवश्य रुचेगा। भूमिका में बेनीपुरी ने अपनी चिर-परिचित शैली में पदों की भाषा और कविता माधुरी का जो वर्णन किया है, वह तो अन्यत्र दुर्लभ है ही।

‘राजा की गगनचुम्बी अट्टालिका’ से लेकर ग़रीबों की टूटी हुई फूस की झोंपड़ी तक में विद्यापति के पदों का जो सम्मान है; भूतनाथ के मन्दिर और कोहबर घर में पदों की जो प्रतिष्ठा है, उसको ध्यान में रखते हुए ही यह पुस्तक बेनीपुरी जी ने सम्पादित की है। इससे विद्यापति और उनकी पदावली की नई अर्थवत्ता और चमक उजागर होती है। पाठ्यक्रम की दृष्टि से यह सर्वोत्तम है।

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