Juloos Renu, Phanishwar Nath
Language: Hin Publication details: New Delhi Rajkamal Prakashan Pvt. Ltd 2022 Edition: 2nd EdtionDescription: 144p. Soft/Paper BoundISBN: 9789388933693Subject(s): Hindi -- Hindi NovelDDC classification: H891.433 Online resources: Click here to access onlineItem type | Home library | Collection | Call number | Materials specified | Vol info | Copy number | Status | Notes | Date due | Barcode |
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Books | HPSMs Ganpat Parsekar College of Education, Harmal HPS-Hindi Novels | HPS-HINDI | H891.433 REB/JUL (Browse shelf(Opens below)) | - | 1 | Available | 8 Shelf | HPS-3765 |
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H891.433 PRE/GOD Godan | H891.433 PRE/GOD Godan | H891.433 RAZ/DIL Dil Ek Sada Kaghaz | H891.433 REB/JUL Juloos | H891.433 SAH/JHA Jharokhe | H891.433 SAH/JHA Jharokhe | H891.433 SHR/HAM Hamara Shahar Us Baras |
फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ एक नाम, जो आंचलिक साहित्य का पर्याय बन चुका है। ‘मैला आँचल’ और ‘परती परिकथा’ उनकी ऐसी सशक्त एवं अनुपम कृतियाँ हैं जो आंचलिक साहित्य का मानक मानी जाती हैं। उन्हीं की साधना का सुफल है यह उपन्यास ‘जुलूस’। ‘रेणु’ का यह उपन्यास एक वृत्त-चित्र की भाँति वर्तमान जीवन, उसकी विसंगतियों और उसके सतहीपन को परत-दर-परत उघाड़ता चलता है। उल्लेखनीय है कि ‘जुलूस’ प्रान्तीय भेदभाव के सामने लगाया गया एक ऐसा अमिट प्रश्न-चिन्ह है जो पाठक को विचलित कर राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए और अधिक प्रेरित करता है। भूमि....
पिछले कुछ वर्षों से मैं एक अद्भुत भ्रम में पड़ा हुआ हूँ। दिन-रात-सोते-बैठते, खाते-पीते-मुझे लगता है कि एक विशाल जुलूस के साथ चल रहा हूँ अविराम।
यह जुलूस कहाँ जा रहा है, ये लोग कौन हैं, कहाँ जा रहे हैं, क्या चाहते हैं-मैं कुछ नहीं जानता। इस महाकोलाहल में अपने मुँह से निकाला हुआ नारा-मुझे नहीं सुनाई पड़ता। चारों ओर एक बवण्डर मँडरा रहा है, धूल का।...
इस भीड़ से निकलकर, राजपथ के किनारे सुसज्जित ‘बालकॅनी’ में खड़ा होकर जुलूस को देखने की चेष्टा की है। किन्तु इस भीड़ से अलग होने की सामर्थ्य मुझमें नहीं। इस जुलूस में चलनेवाले नर-नारियों से-अपने आस-पास के लोगों से मेरा परिचय नहीं। लेकिन उनकी माया....ममता...मैं छिटककर अलग नहीं हो सकता !
मेरे इस उपन्यास ‘जुलूस’ पर मेरे इस अद्भुत मानसिक विकार का प्रभाव अवश्य पड़ा होगा !
फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ का सम्पूर्ण साहित्य राजनीति की मज़बूत बुनियाद पर स्थित है । उन्होंने सामाजिक बदलाव में साहित्य की भूमिका को कभी राजनीति से कमतर नहीं माना । ‘मैला आँचल’ और 'परती परिकथा’ की भाँति 'जुलूस’ उपन्यास पूर्णिया जिले में नए बस रहे एक गाँव नबीनगर और पुर्व-प्रतिष्ठित गोडियर गाँव के प्र सम्बन्धों और संघर्षों की कथा है । इस उपन्यास में ‘रेणु’ ने स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात होनेवाले दंगों के कारण पूर्वी बंगाल से विस्थापित होकर भारत आए लोगों के दुख-दर्द की गाथा को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है । साथ ही उन्होंने यह भी दिखाना चाहा है कि स्वतंत्रता-प्राप्ति के चौदह-पन्द्रह साल बाद भी गाँव में कितना अन्धकार, अन्ध-विश्वास, गरीबी और भुखमरी आदि व्याप्त है और लोग अनेक जटिलताओं में फँसे हुए हैं । एक संघर्षधर्मी सामाजिक चेतना तथा सामन्ती मूल्यों एवं लोगों के प्रति प्रतिरोध की भावना 'रेणु' के लगभग सभी उपन्यासों में मिलती है । ऐसा इस उपन्यास में भी देखने को मिलेगा । साथ ही माटी और मानुष के लगाव की इस रागात्मक कथा में पाठक को पवित्रा जैसी अविस्मरणीय किरदार देखने को मिलेगी ।.
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