Amazon cover image
Image from Amazon.com

Pratinidhi Kahaniyan Gyanendrapati

By: GyanendrapatiContributor(s): Mangalam, KumarLanguage: Hin Publication details: New Delhi Rajkamal Prakashan Pvt, Ltd. 2022 Edition: 1st EditionDescription: 144p. Soft/Paper BoundISBN: 9789393768513Subject(s): Hindi -- Hindi StoryDDC classification: H891.431
Contents:
—कुमार मंगलम क्रम झारखंड के पहाड़ों का अरण्यरोदन पथरगामा और एक छोटा पत्थर ललमटिया में लहू के दाग नहीं दिखते मंगल गान पटना का गोलघर पटना : 18 मार्च, 1974 जे पी की प्रतिमा बिड़ला के नाम पर एक तारामंडल है कलकत्ता की एक ट्राम में एक मधुबनी पेंटिंग ट्राम में एक याद बनानी बनर्जी इंतजार चीजों के बहाने आशीर्वाद खजुराहो : तीन कविताएँ हरिप्रसाद चौरसिया का बाँसुरी-वादन सुनते हुए सीतामढ़ी नदी और नगर नौका-विहार गंगातट, शुरुरात की वेला उस पार के लिए मणिकर्णिका का बाशिंदा मरघट पर चाय गंगा-आरती-शोभा-वर्णन चुनाव-बाद का पत्रकारिता- दिवस चन्द्रबली जी के साथ चाय सबसे साफ : त्रिलोचन न नौ में, न सौ में हिंसा के विरुद्ध मालवाहक जलपोत उतरे हैं बिटिया का नाम दीवाली बे-दीया पारपुल की रहगुज़र नगर-मुख के करीब चमगादड़ चमगादड़ का बच्चा पाँच चिड़ियों ने राजाराम कविता धूपछाँही शील ही है मूल द्रव्य दुनिया को धुनिया चाहिए एक चित्त-धातु कविता-विपथ मनुष्यता की रीढ़ मूर्धन्य ष के लिए एक विदा-गीत ओ-ओ आ-आ का विदा-गीत संशय कलहाहत समय के क्लान्ति-काल में कोरोना-काल में अड़हुल अबके, नागपंचमी में लौटना 8 दिसंबर, 2020 लेन-देन मित्र-मिलन पार्क में एक भेंट ओ मेरी ह्रस्व इ! भावनाओं की अकाल-वेला में पारस का परस पुरी का समुद्र जरत्कारु एक प्रेम का समाधि-लेख मालती चूड़ियाँ थनैली दाई माँ ऐ काकी! विदा, माँ! घिरते अँधेरे में दरस-रस तारक मंत्र बद्धमुक्त
Summary: ज्ञानेन्द्रपति का जन्म झारखंड के एक गाँव पथरगामा में 1 जनवरी, 1950 को एक किसान परिवार में हुआ। उच्च शिक्षा पटना में हुई। विश्वविद्यालयीन जीवन में छात्र-राजनीति और जन-संघर्षों में खासे सक्रिय रहे। दसेक वर्षों तक बिहार सरकार में अधिकारी के रूप में कार्य करने के बाद नौकरी को 'ना करी' कहा और बनारस में रहते हुए अपना पूरा समय लेखन को समर्पित कर दिया। स्वभाव से विनम्र किन्तु दृढ़, ज्ञानेन्द्रपति अभय और करुणा में पगे, जीवन्त, प्रेमिल, खोजी, यायावर, और धरती धाँगने के अभ्यासी हैं। शतरंज से भी उन्हें खासा लगाव है। उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं—'आँख हाथ बनते हुए' (1970), 'शब्द लिखने के लिए ही यह कागज बना है' (1981), 'गंगातट' (1999), 'संशयात्मा' (2004), 'भिनसार' (2006), 'कवि ने कहा' (2011), 'मनु को बनाती मनई' (2013), 'गंगा-बीती : गंगू तेली की जबानी' (2019), 'कविता भविता' (2020), प्रतिनिधि कविताएँ (2022) (कविता-संग्रह); 'एकचक्रानगरी' (2022) (काव्य-नाटक); 'पढ़ते-गढ़ते' (2005) (कथेतर गद्य)। 'संशयात्मा' के लिए ज्ञानेन्द्रपति को वर्ष 2006 का 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार' प्रदान किया गया। समग्र लेखन के लिए उन्हें 'पहल सम्मान', 'शमशेर सम्मान' और 'जनकवि नागार्जुन स्मृति सम्मान' से सम्मानित किया जा चुका है।
Star ratings
    Average rating: 0.0 (0 votes)
Holdings
Item type Home library Collection Call number Materials specified Vol info Copy number Status Notes Date due Barcode
Books Books HPSMs Ganpat Parsekar College of Education, Harmal
HPS-Hindi Short Stories
HPS-HINDI H891.431 GYA/PRA (Browse shelf(Opens below)) - 1 Available 8 Shelf HPS-3755
Books Books HPSMs Ganpat Parsekar College of Education, Harmal
HPS-Hindi Short Stories
HPS-HINDI H891.431 GYA/PRA (Browse shelf(Opens below)) - 2 Available 8 Shelf HPS-3756

—कुमार मंगलम
क्रम
झारखंड के पहाड़ों का अरण्यरोदन
पथरगामा और एक छोटा पत्थर
ललमटिया में लहू के दाग नहीं दिखते
मंगल गान
पटना का गोलघर
पटना : 18 मार्च, 1974
जे पी की प्रतिमा
बिड़ला के नाम पर एक तारामंडल है
कलकत्ता की एक ट्राम में एक मधुबनी पेंटिंग
ट्राम में एक याद
बनानी बनर्जी
इंतजार
चीजों के बहाने
आशीर्वाद
खजुराहो : तीन कविताएँ
हरिप्रसाद चौरसिया का बाँसुरी-वादन सुनते हुए
सीतामढ़ी
नदी और नगर
नौका-विहार
गंगातट, शुरुरात की वेला
उस पार के लिए
मणिकर्णिका का बाशिंदा
मरघट पर चाय
गंगा-आरती-शोभा-वर्णन
चुनाव-बाद का पत्रकारिता- दिवस
चन्द्रबली जी के साथ चाय
सबसे साफ : त्रिलोचन
न नौ में, न सौ में
हिंसा के विरुद्ध
मालवाहक जलपोत उतरे हैं
बिटिया का नाम
दीवाली बे-दीया
पारपुल की रहगुज़र
नगर-मुख के करीब
चमगादड़
चमगादड़ का बच्चा
पाँच चिड़ियों ने
राजाराम
कविता धूपछाँही
शील ही है मूल द्रव्य
दुनिया को धुनिया चाहिए एक
चित्त-धातु
कविता-विपथ
मनुष्यता की रीढ़
मूर्धन्य ष के लिए एक विदा-गीत
ओ-ओ आ-आ का विदा-गीत
संशय
कलहाहत समय के क्लान्ति-काल में
कोरोना-काल में अड़हुल
अबके, नागपंचमी में
लौटना
8 दिसंबर, 2020
लेन-देन
मित्र-मिलन
पार्क में एक भेंट
ओ मेरी ह्रस्व इ!
भावनाओं की अकाल-वेला में
पारस का परस
पुरी का समुद्र
जरत्कारु
एक प्रेम का समाधि-लेख
मालती
चूड़ियाँ
थनैली
दाई माँ
ऐ काकी!
विदा, माँ!
घिरते अँधेरे में
दरस-रस
तारक मंत्र
बद्धमुक्त

ज्ञानेन्द्रपति का जन्म झारखंड के एक गाँव पथरगामा में 1 जनवरी, 1950 को एक किसान परिवार में हुआ। उच्च शिक्षा पटना में हुई। विश्वविद्यालयीन जीवन में छात्र-राजनीति और जन-संघर्षों में खासे सक्रिय रहे। दसेक वर्षों तक बिहार सरकार में अधिकारी के रूप में कार्य करने के बाद नौकरी को 'ना करी' कहा और बनारस में रहते हुए अपना पूरा समय लेखन को समर्पित कर दिया। स्वभाव से विनम्र किन्तु दृढ़, ज्ञानेन्द्रपति अभय और करुणा में पगे, जीवन्त, प्रेमिल, खोजी, यायावर, और धरती धाँगने के अभ्यासी हैं। शतरंज से भी उन्हें खासा लगाव है। उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं—'आँख हाथ बनते हुए' (1970), 'शब्द लिखने के लिए ही यह कागज बना है' (1981), 'गंगातट' (1999), 'संशयात्मा' (2004), 'भिनसार' (2006), 'कवि ने कहा' (2011), 'मनु को बनाती मनई' (2013), 'गंगा-बीती : गंगू तेली की जबानी' (2019), 'कविता भविता' (2020), प्रतिनिधि कविताएँ (2022) (कविता-संग्रह); 'एकचक्रानगरी' (2022) (काव्य-नाटक); 'पढ़ते-गढ़ते' (2005) (कथेतर गद्य)। 'संशयात्मा' के लिए ज्ञानेन्द्रपति को वर्ष 2006 का 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार' प्रदान किया गया। समग्र लेखन के लिए उन्हें 'पहल सम्मान', 'शमशेर सम्मान' और 'जनकवि नागार्जुन स्मृति सम्मान' से सम्मानित किया जा चुका है।

Hindi

There are no comments on this title.

to post a comment.

Powered by Koha