Television KI Bhasha (Record no. 948661)
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000 -LEADER | |
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fixed length control field | 09724nam a22002057a 4500 |
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
ISBN | 9788183614528 |
041 ## - LANGUAGE CODE | |
Language code of text/sound track or separate title | Hin |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | H891.43 |
Item number | BUR/TEL |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Personal name | Burnwal, Harish Chandra |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | Television KI Bhasha |
Statement of responsibility, etc | Burnwal, Harish Chandra |
250 ## - EDITION STATEMENT | |
Edition statement | 4th Edition |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. | |
Place of publication | New Delhi |
Name of publisher | Radhakrishna Prakashan Pvt. Ltd. |
Year of publication | 2022 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Number of Pages | 236p. |
Other physical details | Hard Bound |
505 ## - FORMATTED CONTENTS NOTE | |
Formatted contents note | अनुमान के मुताबिक हिन्दी में लगभग एक लाख पैंतालीस हजार शब्द हैं, लेकिन हिन्दी टेलीविजन पत्रकारिता के लिए महज पन्द्रह सौ शब्दों की जानकारी ही काफी है यानी अगर आपने इतने शब्दों की जानकारी हासिल कर ली तो क मानिए, आप भाषा के लिहाज से हिन्दी के अच्छे टेलीविजन पत्रकार तो जरूर बन जाएँगे । अफसोस की बात है कि ये जानकारी भी टेलीविजन पत्रकारों को भारी लगती है । शब्दों की सही समझ की कमी, भाषा के आधे–अधूरे ज्ञान की वजह से टेलीविजन पत्रकार ऐसी गलतियाँ कर बैठते हैं कि कई बारगी मजाक का पात्र तक बन जाते हैं । यही नहीं, शब्दों के गलत इस्तेमाल से अर्थ का अनर्थ तक हो जाता है । इसलिए पत्रकारिता के लिहाज से भाषा की सही जानकारी बेहद जरूरी है । हिन्दी न्यूज चैनलों की दुनिया भले ही समय के साथ काफी व्यापक होती चली गई हो, लेकिन हकीकत यही है कि आज भी टीवी पत्रकारिता में भाषा को लेकर एक भी ऐसी किताब नहीं है, जो भाषा और पत्रकारिता को जोड़ते हुए एक मुकम्मल जानकारी दे सके । यही परेशानी टीवी पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले छात्र–छात्राओं के साथ है । हिन्दी के प्रोफेसर ही पत्रकारिता के बच्चों को भी पढ़ाते हैं, ऐसे में पत्रकारिता की भाषा का व्यावहारिक ज्ञान कभी भी विद्यार्थियों को सही से नहीं हो पाता और इसका खामियाजा टेलीविजन पत्रकारिता को होता है । टेलीविजन की अपनी एक अलग ही दुनिया होती है । इसकी भाषा आम बोलचाल की भाषा होते हुए भी अलग है । इसकी भाषा मानकता के करीब रहते हुए भी इसके नियमों का पालन कभी नहीं करती । नए–नए शब्द समय और जरूरत के हिसाब से गढ़े जाते हैं तो कई शब्दों को हमेशा के लिए त्याग दिया जाता है । इस भाषा को अंग्रेजी, उर्दू और दूसरी भाषाओं से कोई परहेज नहीं । इसकी भाषा मीडिया के अन्य माध्यमों मसलन अखबार या फिर रेडियो की भाषा से बेहद अलग है । |
520 ## - SUMMARY, ETC. | |
Summary, etc | <br/>टेलीविजन पत्रकारिता पर आई एक नई किताब में भाषाई प्रयोग को समझाने की कोशिश की गई है.किताब में किताबी नहीं व्यवहारिक बातें बताई हैं. इससे सिर्फ नए पत्रक... टीवी पत्रकारिता के छात्रों और इस पेशे से जुड़े लोगों के लिए ‘टेलीविजन की भाषा’ शीर्षक से लिखी हरीश चंद्र बर्णवाल की किताब मार्केट में लांच हुई है। IBN7 में एसोसिएट एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूर बर्णवाल की ये दूसरी किताब है। किताब के नाम के अनुरूप ये किताब सीधे-सीधे टेलीविजन की भाषा से जुड़ी है।<br/><br/>किताब में सिलसिलेवार तरीके से हर विषय पर विस्तार पूर्वक लिखा गया है। मसलन न सिर्फ टेलीविजन की दुनिया के अनुरूप शब्दों और वाक्यों के बारे में तफ्सील से लिखा गया है। बल्कि स्लग, टॉपिक, प्रोमो, हेडलाइंस, एंकर या फिर रिपोर्टर की भाषा पर अलग-अलग चैप्टर बनाकर विस्तारपूर्वक बताया गया है।<br/><br/>खुद लेखक के मुताबिक “मैं पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद जब न्यूज चैनल में काम करने के लिए आया तो एक नई तरह की दुनिया सामने नजर आई, ऐसे में मुझे यही लगता रहा कि जो पढ़ाई मैंने की, आखिर वो किस काम की है। इसके बाद मैंने एक ऐसी किताब लिखने का फैसला किया, जो पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले लोगों को व्यवहारिक ज्ञान दे सके।” ये किताब इसी दिशा में एक कोशिश है।<br/><br/>इस किताब में एंकर की भाषा और रिपोर्टर की जुबान पर अलग-अलग चर्चा की गई है। यही नहीं इस किताब में छोटी-छोटी बारीकियों को भी समेटने की कोशिश की गई है। मसलन स्त्रीलिंग-पुल्लिंग, वचन, मुहावरे और लोकोक्तियां का भी एक अच्छा खासा संग्रह दिया गया है। भाषा को लेकर कानूनी बारीकियों को भी इसमें समेटने की कोशिश की गई है।<br/><br/>इस किताब के आमुख को लिखा है वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने। सरदेसाई एक जगह लिखते हैं कि “टेलीविजन न्यूज मीडिया में लोगों का भरोसा फिर से कैसे बहाल किया जाए, इसके लिए सही भाषा की समझ जरूरी है। चाहे वो बोल्ड हेडलाइन हो, ब्रेकिंग न्यूज हो या फिर न्यूज फ्लैश। जरूरी है कि उसकी भाषा तस्वीरों के अनुकूल हो और बारीक छान-बीन के बाद उसे तथ्यों के अनुरूप ही लिखा जाए। भाषा एक दोधारी तलवार की तरह है। इसका प्रयोग संपर्क बनाने में भी किया जा सकता है और उलझाने में भी। हरीश की किताब हर उस व्यक्ति के लिए सटीक मार्गदर्शन उपलब्ध कराती है, जो फिलहाल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में काम कर रहे हैं या भविष्य में करेंगे।” |
546 ## - LANGUAGE NOTE | |
Language note | Hindi |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Topical Term | Hindi |
Form subdivision | Hindi Media |
856 ## - ELECTRONIC LOCATION AND ACCESS | |
Uniform Resource Identifier | https://www.aajtak.in/india/story/new-book-in-television-language-109243-2011-09-18 |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Koha item type | Books |
Withdrawn status | Lost status | Damaged status | Not for loan | Collection code | Home library | Current library | Shelving location | Date acquired | Source of acquisition | Cost, normal purchase price | Serial Enumeration / Volume No. | Full call number | Accession Number | Copy number | Cost, replacement price | Price effective from | Koha item type | Public note |
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HPS-HINDI | HPSMs Ganpat Parsekar College of Education, Harmal | HPSMs Ganpat Parsekar College of Education, Harmal | HPS-Hindi Media | 18.01.2023 | Shubham Publication Bill No.SP 0141 | 695.00 | - | H891.43 BUR/TEL | HPS-3775 | 1 | 695.00 | 17.01.2023 | Books | 8 Shelf |